Hindi Kavita,Hindi poem
शीर्षक: मैं भी जीना चाहता हूं।
मैं भी जीना चाहता हूं,
इन पंछियों की तरह |
ना गरीबी का भय होता
ना अमीरी का घमंड होता,
ना कोई अपना होता,
ना कोई पराया होता।
मैं भी जीना चाहता हूं,
इन पंछियों की तरह।
ना धन की चिंता होती,
ना नौकरी की चिंता होती,
ना घर - महल की चिंता होती,
ना सीमा की रेखा होती।
ना वर्तमान की चिंता होती,
ना भविष्य की चिंता होती,
और ना ही जाति-धर्म की पाबंदी होती ।
मैं भी जीना चाहता हूं,
इन पंछियों की तरह |
ना रंग-रूप का गुरूर होता,
ना सजना-संवरना होता,
ना आज-कल की चिंता होती,
ना मिलने बिछड़े की चिंता होती।
मैं भी जीना चाहता हूं,
इन पंछियों की तरह ।
प्रभु कुशवाहा ✍🏻
मैं भी जीना चाहता हूं,
इन पंछियों की तरह |
ना गरीबी का भय होता
ना अमीरी का घमंड होता,
ना कोई अपना होता,
ना कोई पराया होता।
मैं भी जीना चाहता हूं,
इन पंछियों की तरह।
ना धन की चिंता होती,
ना नौकरी की चिंता होती,
ना घर - महल की चिंता होती,
ना सीमा की रेखा होती।
ना वर्तमान की चिंता होती,
ना भविष्य की चिंता होती,
और ना ही जाति-धर्म की पाबंदी होती ।
मैं भी जीना चाहता हूं,
इन पंछियों की तरह |
ना रंग-रूप का गुरूर होता,
ना सजना-संवरना होता,
ना आज-कल की चिंता होती,
ना मिलने बिछड़े की चिंता होती।
मैं भी जीना चाहता हूं,
इन पंछियों की तरह ।
प्रभु कुशवाहा ✍🏻
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